औद्योगिक क्षेत्र में जहां गेहूं उगाना भी मुश्किल था, वहां गुलाब के फूल महकाए

जहां दीमक ने मिट्टी की ताकत सोख ली थी और कीटनाशकों के असर से गेहूं जैसी आम फसलें भी मुरझा रही थीं, वहां अब गुलान्न की खुशबू दूर-दूर तक फैल रही है। जयपुर में सांगानेर तहसील के प्रहलादपुरा गांव के एक खेत में खिले गुलाब राहगीरों को इतने आकर्षित करते हैं कि लोग गाड़ियां रोककर फूलों के बीच फोटो खिंचवाते हैं।

यह एक बीघा खेत किसान राधेश्याम शर्मा का है। उनके हौसले और नवाचार से महक रहे गुलाब लोगों को सुकून और बल्कि दूसरे किसानों को प्रेरणा दे रहे हैं।राधेश्याम ने बताया- पिछले साल सर्दियों मेंटमाटर की पौध लगाई थी लेकिन सर्दी और कीटों ने पूरी फसल बर्बाद कर दी। परिवार वालों ने पहले की तरह गेहूं बोने की सलाह दी मगर मैंने तय किया कि मेहनत और लागत की तुलना में कम कमाई देने वाली फसल बोने के बजाय कुछ अलग करूंगा। हालांकि मेरा खेत रीको इंडस्ट्रीयल एरिया में है, जहां खेती की संभावना कम ही मानी जाती है क्योंकि मिट्टी की उर्वरता और हवा की गुणवत्ता पर लगातार असर पड़ता है। लेकिन इस बीच मुझे देसी गुलाब की खेती के बारे में जानकारी मिली तो मैंने गुलाब की खेती करने की ठानी। पुष्कर के एक विक्रेता से संपर्क किया। वहां से बस के जरिए पौधे मंगवाए। हालांकि शुरुआत आसान नहीं रही। पहली बार जब गुलाब के 2500 पौधे लगाए तो कुछ ही सप्ताह में दीमक ने सभी पौधे नष्ट कर दिए। इससे बहुत हताशा हुई लेकिन मैंने तय किया कि एक बार और कोशिश करूंगा।

इसके बाद दोबारा पौधे मंगवाए और इस बार पूरी सावधानी से रोपाई की। जिसने पौधे सप्लाई किए थे, उससे करीब दो महीने तक लगातार संपर्क में रहा। आखिर इस बार मेहनत रंग लाई। फिलहाल पौधों की हाइट कम है लेकिन रोज 40-50 किलो तक गुलाब के फूल तोड़े जाते हैं, जिन्हें मंडी में बेचता हूं। इससे गेहूं के मुकाबले कई गुना कमाई हो रही है। राधेश्याम का कहना है- गुलाब की खेती में शुरुआत में मेहनत जरूर लगती है लेकिन उसके बाद देखरेख करना मुश्किल नहीं है। गर्मियों में सात-आठ दिन में एक बार सिंचाई करनी होती है। बरसात में फूल ज्यादा आते हैं। कीटनाशक भी नहीं देना पड़ता। देखरेख सही करें तो फूलों में कीड़े नहीं लगते। इससे लागत कम, लाभ अधिक मिलता है। इन पौधों की उम्र 7 से 8 साल होती है। अब दूसरे किसान भी मुझसे इस खेती की तकनीक सीख रहे हैं।

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